बोली ख़ुद-सर हवा एक ज़र्रा है तू
यूँ उड़ा दूँगी मैं, मौज-ए-दरिया बढ़ी
बोली मेरे लिए एक तिनका है तू
यूँ बहा दूँगी मैं, आतिश-ए-तुंद की
इक लपट ने कहा मैं जला डालूँगी
और ज़मीं ने कहा मैं निगल जाऊँगी
मैं ने चेहरे से अपने उलट दी नक़ाब
और हँस कर कहा, मैं सुलैमान हूँ
इब्न-ए-आदम हूँ मैं यानी इंसान हूँ
नज़्म
ए'तिमाद
अख़्तर-उल-ईमान