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दूसरा कप | शाही शायरी
dusra cup

नज़्म

दूसरा कप

गीताञ्जलि राय

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मेरे लिए तुम्हारा प्यार बिल्कुल वैसा था
जैसे चाय के आख़िरी घूँट में दूसरे कप की तलब

दूसरा कप जिस की क़िस्मत में अक्सर लिखा होता है
मेज़ के किनारे पड़े पड़े ठंडा होना

ख़ैर यही फ़र्क़ है इंसान और चाय में
कि इंसान को पहली मोहब्बत में ही दूसरे कप वाली बे-रुख़ी मिल जाती कभी