दूर ही दूर रही बस मुझ से
पास वो मेरे आ न सकी थी
लेकिन उस को चाह थी मेरी
वो ये भेद छुपा न सकी थी
अब वो कहाँ है और कैसी है
ये तो कोई बता न सकेगा
पर कोई उस की नज़रों को
मेरे दिल से मिटा न सकेगा
अब वो ख़्वाब में दुल्हन बन कर
मेरे पास चली आती है
मैं उस को तकता रहता हूँ
लेकिन वो रोती जाती है
नज़्म
दूरी
मुनीर नियाज़ी