EN اردو
दुनिया भर के दुख का हासिल | शाही शायरी
duniya bhar ke dukh ka hasil

नज़्म

दुनिया भर के दुख का हासिल

इमरान शमशाद

;

ख़ाली कमरा
गहरी साँसें

कमरे के इक कोने में इक टूटी-फूटी मेज़
मेज़ पे दुनिया भर का गोरख-धंदा

काठ-कबाड़
काठ-कबाड़ से थोड़ा आगे तिरछा पेपर-वेट

पेपर-वेट के नीचे काग़ज़
काग़ज़ पर लफ़्ज़ों का ढेर

ढेर के पास इक टूटी ऐनक
ऐनक के शीशों के पीछे मोटे मोटे हर्फ़

ऐनक के शीशों से आगे नीले पीले काले धब्बे
धब्बों में औंधे मुँह लेटी ऐश-ट्रे में मुर्दा साँसें बुझती सिगरेट

और माचिस की आधी तीली
माचिस की तीली पे चिपका चाय का छिलका

और इक टूटी डंडी का कप
कप से आगे मेज़ का कोना

मेज़ से आगे झूलती कुर्सी
कुर्सी पर इक शख़्स

शख़्स भी वो जिस की आँखों में दुनिया भर का दुख
दुनिया भर के दुख का हासिल

दुनिया भर का दुख!!