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दोस्ती का सितारा | शाही शायरी
dosti ka sitara

नज़्म

दोस्ती का सितारा

शब्बीर शाहिद

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यहाँ सूरज चमकता है
नदी के साफ़ पानी में

हवा मस्ताना फिरती है यहाँ
अपनी रवानी में

मगर दिन-भर मैं गुम रहता हूँ
ख़्वाब-ए-सख़्त-जानी में

सितारे
फिर सर-ए-शाम इस फ़ज़ा में तुम उभरते हो

मिरी हर शाख़ में
आसूदगी की शम्अ जलती है

मिरे हर बर्ग से
मौजूदगी की लौ निकलती है