दो-पाया
कोई नहीं सोचता
इक दिन फ़ना
हो जाएगा
हमारा वजूद
ज़िंदगी है तो
जीना है
बिला-वज्ह बे-सबब
कितनी हैरान परेशान
कितनी बे-नाम बे-जान
कभी लगती है
जैसे होते हैं
चौपाया
हम भी कहीं
दो-पाया तो नहीं
इंसान की शक्ल में
नज़्म
दो-पाया
ख़दीजा ख़ान