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दो-पाया | शाही शायरी
do-paya

नज़्म

दो-पाया

ख़दीजा ख़ान

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दो-पाया
कोई नहीं सोचता

इक दिन फ़ना
हो जाएगा

हमारा वजूद
ज़िंदगी है तो

जीना है
बिला-वज्ह बे-सबब

कितनी हैरान परेशान
कितनी बे-नाम बे-जान

कभी लगती है
जैसे होते हैं

चौपाया
हम भी कहीं

दो-पाया तो नहीं
इंसान की शक्ल में