इक पत्ती के
टूटने गिरने की आवाज़ से
सिहर उठा है
सहेमता
पेड़
बे-तअल्लुक़ शाख़ पर बैठी है
चिड़िया
नाक के नीचे पड़ा है
घोंसला बिखरा हुआ
जिस के गिरने और बिखरने की
सदा से
बे-ख़बर है
पेड़
मुद्दतों से
वो हमारी ही तरह हैं
साथ साथ
नज़्म
दो अजनबी
आदिल रज़ा मंसूरी