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दो आलम | शाही शायरी
do aalam

नज़्म

दो आलम

ज़मान मलिक

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इक भरपूर मुकम्मल पन
यक जानी ग़ुस्ल और नाश्ता

धोबी धुले हुए कपड़े बे पॉलिश बूट
सड़कें आबादी तन्हाई

ख़बरें शे'र आवाज़ें रंग
मसाफ़त सब्ज़ा पेड़ पहाड़ और पानी

नंगे पैर और सत्ह की हैरानी दिल की गहराई
तन्हाई का सुकून और

तन्हाई की वहशत
इक भरपूर मुकम्मल पन

यक-जानी यकताई
रात का खाना सैर

और हात में हात
और वक़्त की तेज़ी

सीने सिले हुए
ख़ुनकी में हिद्दत

गर्मी में कुछ और भी अच्छी हिद्दत
ख़्वाब बहाओ सारा आलम

जागते जागते सोना सोते सोते
जागते रहना यक ताई यक जानी

पानी दरिया पानी गहरा सब्ज़ समुंदर
जिस में तन डूबें तन्हाई निकले

शह-ए-रग से नज़दीक रगों में रवाँ
सीने की साँस लहू की सुर्ख़ी

आँख की बीनाई यक ताई
यक जानी भरपूर मुकम्मल-पन

तन्हाई
तन्हाई