जागते ख़यालों को, सोचते सवालों को
रत-जगे की आदत है
आशिक़ी की फ़ितरत है
तुझ को नींद प्यारी है
तुझ पे रात भारी है
नींद मौत होती है ख़्वाब की, ख़यालों की
ज़िंदगी के सालों की
तुझ को हर ख़बर जानाँ!
मेरी रात जलने से
मेरे सोच खुलने से
तेरा दिन निकलता है
नज़्म
दिन रात
ख़ालिद मलिक साहिल