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दिन और झाग | शाही शायरी
din aur jhag

नज़्म

दिन और झाग

सरवत हुसैन

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धूप
और

दूरियों के दरमियाँ
एक आवाज़ सुनाई देती है

जैसे मछली
सियाह जाल से बे-ख़बर

सुनहरी परों से
.....पानी काटती है