अब के ख़ुश्बू
शाख़ों पर मस्लूब हुई
उस का चेहरा
एक दरीचा
नए जहानों
में खुलता था
उस ने ख़्वाब सजाए
मेरे सहरा में दीवार उगी
कितनी बहारें
मेरे दिल में
रेज़ा रेज़ा
अब के ख़ुश्बू
शाख़ों पर मस्लूब हुई
नज़्म
दिल के मौसम
ज़मान मलिक
नज़्म
ज़मान मलिक
अब के ख़ुश्बू
शाख़ों पर मस्लूब हुई
उस का चेहरा
एक दरीचा
नए जहानों
में खुलता था
उस ने ख़्वाब सजाए
मेरे सहरा में दीवार उगी
कितनी बहारें
मेरे दिल में
रेज़ा रेज़ा
अब के ख़ुश्बू
शाख़ों पर मस्लूब हुई