शाम की ज़ौ
हर तरफ़ साहिल पे हल्का सा अँधेरा अब्र का
दूर उफ़ुक़ पर इक उदासी का मुहीत
डूबी डूबी महव सी नमनाक आँखें
दर्द-ए-फ़ुर्क़त से हज़ीं रोया हुआ दिल
और समुंदर
नर्म लहरों के मुलाएम हाथ से
तिफ़्ल को दे रहा है हौले हौले थपकियाँ
नज़्म
दिल-दही
अब्दुल अहद साज़