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दीवारें | शाही शायरी
diwaren

नज़्म

दीवारें

क़तील शिफ़ाई

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डूबे हुए गुलाब में वो जिस्म के ख़ुतूत
जब याद आए हैं

आँखों में कितने रंग-महल जगमगाए हैं
जब याद आए हैं

वो जिस्म के ख़ुतूत
वो जिस्म के ख़ुतूत की इक दिल-नशीं पुकार

चाहत की राह में
हम ने सुनी थी जो कभी पहली निगाह में

चाहत की राह में
इक दिल-नशीं पुकार

इस दिल-नशीं पुकार का अंजाम-ए-दिल-गुदाज़
कैसे भुलाएँ हम

देते रहेंगे दैर-ओ-हरम को दुआएँ हम
कैसे भुलाएँ हम

अंजाम-ए-दिल-गुदाज़