नींद में चलते चलते यक-दम
गिर जाते हैं
ऊदे फूल शटाले के
बैर बहूटी सावन की
दूर उफ़ुक़ पर
अर्ज़-ओ-समा को जोड़ने वाली
मद्धम लाइन
और उसे छूने की धुन में
नन्हे नर्म गुलाबी पाँव
सांवल शाम पड़े का मंज़र
फैला चाँद समुंदर
सारा बचपन गिर जाता है
धूप की ठोकर रह जाती है
नज़्म
धूप की ठोकर
परवीन ताहिर