कमरे की दीवार तोड़ कर मेरे सामने आया था
अपना सीना चीर के मुझ को अपना ख़ून पिलाया था
चमगादड़ सा उड़ा खुली खिड़की से बाहर पहुँचा था
आँख से ओझल हुआ नहीं और मेरे अंदर पहुँचा था
उस के लिए मैं रोज़ रात को ख़ून चूस कर लाता हूँ
नज़्म
ड्रैकुला
मोहम्मद अल्वी