इन दिनों ये हालत है मेरी ख़्वाब-ए-हस्ती में
फिर रहा हूँ मैं जैसे इक ख़राब बस्ती में
ख़ौफ़ से मफ़र जैसे शहर की ज़रूरत है
ऐश की फ़रावानी उस की एक सूरत है
इन दिनों में मय-नोशी फ़ेल-ए-सूद लगता है
औरतों की सोहबत में दिल बहुत बहलता है
नज़्म
डराए गए शहरों के बातिन
मुनीर नियाज़ी