EN اردو
दराड़ | शाही शायरी
daraD

नज़्म

दराड़

मुनीर अहमद फ़िरदौस

;

रिश्तों की अदावत में
दिलों में जो दराड़ पड़ती है

उस से रिसता ख़ून कभी नहीं रुकता
यहाँ तक कि

मासूमियत सुर्ख़ चेहरा लिए पैदा होती है
हम सब की मंज़िल एक सफ़ेद शहर

जो रौशन चेहरे वालों का मस्कन
मगर हम सुर्ख़ हाथ और सुर्ख़ चेहरे लिए

कैसे इस शहर में दाख़िल होंगे?