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दर-पा-ए-अजल | शाही शायरी
dar-e-pa-e-ajal

नज़्म

दर-पा-ए-अजल

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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घर में कुछ भी नहीं तारीक सी ख़ुशबू के सिवा
कुछ चमकता नहीं अब ख़ौफ़ के जुगनू के सिवा

दम-ए-कोहसार में ढूँडा तो न निकला कुछ भी
बर्फ़ पर छिड़की हुई ख़ून की ख़ुशबू के सिवा

उस का छुपना था कि आँखों में मिरी कुछ न रहा
सुरमई सब्ज़ मुनव्वर रम-ए-आहू के सिवा