घर में कुछ भी नहीं तारीक सी ख़ुशबू के सिवा
कुछ चमकता नहीं अब ख़ौफ़ के जुगनू के सिवा
दम-ए-कोहसार में ढूँडा तो न निकला कुछ भी
बर्फ़ पर छिड़की हुई ख़ून की ख़ुशबू के सिवा
उस का छुपना था कि आँखों में मिरी कुछ न रहा
सुरमई सब्ज़ मुनव्वर रम-ए-आहू के सिवा

नज़्म
दर-पा-ए-अजल
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी