ज़िंदगी
एक दिन
मुझ को भी तल्ख़ कर देगी
मैं
ख़ुशियों को दावत देते
थकना नहीं चाहती
कहीं बिग-बैंग से पहले
ख़ुशी की
विदाई तो नहीं हो गई थी
कहीं मैं
उसे ग़लत जगह तो
दावत-नामा नहीं भेज दिया

नज़्म
दावत-नामा
शीरीं अहमद
नज़्म
शीरीं अहमद
ज़िंदगी
एक दिन
मुझ को भी तल्ख़ कर देगी
मैं
ख़ुशियों को दावत देते
थकना नहीं चाहती
कहीं बिग-बैंग से पहले
ख़ुशी की
विदाई तो नहीं हो गई थी
कहीं मैं
उसे ग़लत जगह तो
दावत-नामा नहीं भेज दिया