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दामन-कशाँ | शाही शायरी
daman-kashan

नज़्म

दामन-कशाँ

अबरारूल हसन

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हर इक गाम पर
एक मद्धम सी आवाज़ कहती है

ये रास्ता
जाना पहचाना पुरखों का छाना हुआ रास्ता

जाने-पहचाने रस्ते की आसानियाँ
उन में बेजा तहफ़्फ़ुज़ हज़र की तमन्ना है

तक़लीद का दाम-ए-ज़ंजीर है
अपने पुरखों के छाने हुए रास्ते

जिन पे आबा-ओ-अज्दाद चलते हुए
एक मंज़िल पे क़रनों से क़ाएम रहे

इन से बच कर गुज़र