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चुभते ख़्वाब | शाही शायरी
chubhte KHwab

नज़्म

चुभते ख़्वाब

माधव अवाना

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ख़्वाब ही तो मिले हैं हमें रोटी के ख़्वाब ता'लीम के ख़्वाब
हुक्मरानों ने दिखाए आज़ादी के बा'द नई तंज़ीम के ख़्वाब

पैंसठ साल के बा'द भी हम करते हैं उन की क़दम-बोसी
हुक्मरानों ने क्या घोल कर दिए हैं इस यक़ीं के ख़्वाब

ना सड़क ना बिजली ना पानी ना रोज़गार है मयस्सर
मुल्क के इक्कीसवीं सदी में पहुँचने के ये हसीन से ख़्वाब

मत आवाज़ उठा मत माँग इंसाफ़ जरा सा डर प्यारे
वर्ना तू देखेगा हवालात में बैठ के नंगी ज़मीन पे ख़्वाब

आँखों में भर ले हक़ीक़त के काँच के टुकड़े ताकि खुली रहें
जागते हुए तय करें हम ख़ुद के लिए बेहतरीन से ख़्वाब