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चोरी-शुदा ख़्वाब की तलाश | शाही शायरी
chori-shuda KHwab ki talash

नज़्म

चोरी-शुदा ख़्वाब की तलाश

मुनीर अहमद फ़िरदौस

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जब रात
ख़्वाबों के सिलसिले ले कर उतरती है

तो शब-ज़ादे अपने ख़्वाब सजा कर सो जाते हैं
मगर मेरी वीरान आँखों से

नींद ये कह कर रुख़्सत हो जाती है
कि मुझे सिर्फ़ उन आँखों में रात काटनी है

जहाँ ख़्वाबों की हुक्मरानी है
मगर उसे ये कौन बताए कि

मेरा ख़्वाब एक मुद्दत से लापता है
तब से मेरी आँखों ने नींद का ज़ाइक़ा नहीं चखा

मैं ने शब को अपने गुम-शुदा ख़्वाब की अलामतें बताईं
तो वो धीरे से मुस्कुरा दी और बोली:

''मैं ने सब से अनमोल ख़्वाब तुम्हारी आँखों में सजाया था''
ये कह कर शब ने हर आँख में छापे मारे

मगर मेरा ख़्वाब बरामद न हुआ
इस ने कहा:

''तुम्हारा ख़्वाब तुम्हारे अंदर से चुराया गया है
अगर तुम अपनी नस्ल को बे-ख़्वाबी के अज़ाब से बचाना चाहते हो

तो तुम्हें अपना ख़्वाब ख़ुद ही ढूँढना पड़ेगा''
तब से मैं रत-जगों की निगहबानी में

अपने अंदर से
अपना चोरी-शुदा ख़्वाब तलाश कर रहा हूँ