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चोर | शाही शायरी
chor

नज़्म

चोर

राही मासूम रज़ा

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सो गई रात बहुत देर हुई
थक के लेटी थी किसी राहगुज़र पर

किसी कमरे किसी वीराने में
किसी मस्जिद किसी मय-ख़ाने में

किसी पत्थर के सुतूँ से टिक कर
किसी दीवार के सीने से लगाए हुए सर

सो गई रात बहुत देर हुई
चाँद भी डूब गया

तारे बद-ख़्वाह पड़ोसी की तरह ग़ौर से देख रहे हैं
कि किसी और पड़ोसी के यहाँ

रौशनी कैसी है क्या होता है
आओ

ऐसे मैं ने देखे देखेगा कोई
आओ और मुझ को चुरा ले जाओ