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चोर | शाही शायरी
chor

नज़्म

चोर

नीलमा सरवर

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मेरे तन पर भूक उगी थी
मेरी आँखें नंगी थी

और मेरे आँगन में हर-जा
ग़ुर्बत भूक और महरूमी के

फूल उगे थे
मेरे काँटे हाथों ने

उन फूलों को तोड़ना चाहा
और हम-साए के घर से

जिस के घर में
सोने चाँदी और पैसों की

दीवारें थीं
अपने ने कुछ ख़ुशियाँ चुन लीं

चोर चोर चोर चोर
कुछ आवाज़ें

फिर ज़ंजीरें
फिर मेरे ही घर की मानिंद

बदबू-दार अंधेरा कमरा
जिस के बाहर

मुझ जैसे बे-चेहरा लोग
मेरे लिए पहरे पे खड़े थे