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छोटू | शाही शायरी
chhoTu

नज़्म

छोटू

अंकिता गर्ग

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चाय खाना बर्तन भांडे
साफ़ करना जो हैं गंदे

बस यही मेरा काम है
और जानते हो छोटू मेरा नाम है

घर का अकेला लड़का हूँ बाक़ी सब लड़की हैं
चार बच्चों संग बिन माँ के इस घर में कड़की है

माँ के पेट में ही मेरा सौदा किया था
बाबा ने मेरे दम पर क़र्ज़ चुकता किया था

बनाया मुझ को बंधुआ मज़दूर
काम करने को किया मजबूर

सुख तो देखो कोसों दूर
कहाँ से आए चेहरे पर नूर

पढ़ना लिखना तो छोड़ो यहाँ खाने के लाले हैं
ऐसे न घबराओ के इन नन्हे हाथों पर छाले हैं

छोटू हो कर भी इस घर को बस हम ही पाले हैं
ऐसे ही दूसरे हाथों में खिलौनों ने को देखा है

पर देखो हम पर क़िस्मत ने कैसा पत्थर फेंका है
क्या लगता है तुम को हम ने बहुत खेला है

सब इन हाथों ने बस काम का बोझ झेला है
इस ज़िंदगी का पहिया तो यही पर ही जाम है

मेरी ज़िंदगी में बस एक यही काम है
और जानते हो छोटू मेरा नाम है