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छिपकिली | शाही शायरी
chhipkili

नज़्म

छिपकिली

फ़रीद इशरती

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हजला-ए-तारीक में पाई है इस ने परवरिश
शम्अ' जलते ही दर-ओ-दीवार पर

ले के मटियाला सा काहीदा बदन
झूमती सर-मस्त आ जाती है ये

पा-ब-जौलाँ चंद परवानों के पास
ग़ोता-ज़न पाते ही जिन को आब-शार-ए-नूर में

तेज़ चमकीली नुकीली आँख से
यूँ देखती है बार-बार

जैसे इक सरमाया-दार
माल-ओ-ज़र की ओट से

करता है मुफ़लिस का शिकार
फिर निकल जाती है ये

सोज़-ओ-ग़म के शाहकार
रौशनी के ताजदार

चंद परवानों की जाँ-सोज़ी से क्या मतलब इसे
शम्अ' की रौशनी ख़याली इस के पीछे गर्द है

हजला-ए-तारीक में पाई है इस ने परवरिश