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छब्बीस जनवरी | शाही शायरी
chhabbis january

नज़्म

छब्बीस जनवरी

कँवल डिबाइवी

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गुलशन में रुत नई है
हर सम्त बे-ख़ुदी है

हर गुल पे ताज़गी है
मसरूर ज़िंदगी है

सरचश्मा-ए-ख़ुशी है
छब्बीस जनवरी है

हर सू ख़ुशी है छाई
सब ने मुराद पाई

फिर जनवरी ये आई
यौम-ए-सुरूर लाई

साअ'त मुराद की है
छब्बीस जनवरी है

आँखों में रंग-ए-नौ है
बातिल से जंग-ए-नौ है

साज़ और चंग-ए-नौ है
हर दर पे संग-ए-नौ है

पुर कैफ़ ज़िंदगी है
छब्बीस जनवरी है

मैं गुनगुना रहा हूँ
मस्ती में गा रहा हूँ

ख़ुशियाँ मना रहा हूँ
आलम पे छा रहा हूँ

दिल महव-ए-बे-ख़ुदी है
छब्बीस जनवरी है

हिन्दोस्तान ख़ुश है
हर पासबान ख़ुश है

हर नौ-जवान ख़ुश है
सारा जहान ख़ुश है

एक जोश-ए-सरमदी है
छब्बीस जनवरी है