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चेहरे की गर्द | शाही शायरी
chehre ki gard

नज़्म

चेहरे की गर्द

क़ासिम याक़ूब

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गाड़ियों के बहाओ में बहते हुए शोर की गर्द
मेरे धुआँ बनते चेहरे पे जमने लगी है

मैं पहले ही जमते हुए ख़ून की
गलती सड़ती हुई

ख़्वाहिशों की कराहत से साँसों की क़य
करने की एक सई-ए-मुसलसल में मसरूफ़ हूँ

मेरा दिल तितलियों की रिफ़ाक़त की ज़िद कर रहा है
मगर मैं उसे हड्डियों से तने जाल से कैसे बाहर निकालूँ

कड़ी आज़माइश है लेकिन
चलो मुस्कुराने की बे-कार ख़्वाहिश जगाएँ

हँसी का प्याला
चलो चेहरे की झुर्रियों में उण्डेलें

अगर हम किसी तरह भी हँस न पाएँ
तो इक दूसरे के ग़लाज़त भरे चेहरे को नोच डालें

अगर हम से ये भी न हो पाए तो रो ही लें
शायद इस तरह हम

अपने गालों पे जमती हुई
गर्द की तह को धो लें