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चंद लम्हे | शाही शायरी
chand lamhe

नज़्म

चंद लम्हे

ख़ुर्शीद रिज़वी

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चंद लम्हे जिन्हें इक लग़्ज़िश-ए-पा ने मेरी
कहीं माज़ी के अंधेरों में कुचल डाला था

चोट खाई हुई नागिन की तरह लहरा कर
मेरे एहसास के हर गोशे पे छा जाते हैं

मेरी आँखों से मय-ए-ख़्वाब उड़ा जाते हैं
रात भर के लिए दीवाना बना जाते हैं

ख़ून हो जाता है जब सोज़िश-ए-पिन्हाँ से भड़कता हुआ दिल
तैरने लगता है रग रग में लहू हो के धड़कता हुआ दिल

कपकपाते हुए होंट
थरथराती हुई नब्ज़

टिमटिमाते हुए आँखों के दिए
गोद में सैल-ए-फ़रावाँ को लिए

ऐसी हालत में कोई कैसे जिए कैसे जिए?