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चैत | शाही शायरी
chait

नज़्म

चैत

सलाहुद्दीन परवेज़

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कोयल
मेरे शब्दों को तू छापे-ख़ाने ले जा

वो अख़बार तो पढ़ते होंगे
पढ़ के ख़बर मेरे मरने की

दौड़े दौड़े घर आएँगे
डाकिये

तू चिट्ठी के बजाए आम मिरी बगिया के अब की
उन के दफ़्तर ले जा

सब से छुपा के आम वो मेरे
हाथों में भर लेंगे

फिर कुर्ते के नीचे, पीछे, सीने के जंगल में उन को दुबका लेंगे
सुखी हवाओ!

अब की जब तुम उन के सुहाने घर से गुज़रो
टेसू के कुछ फूल महकते

उन की खिड़की पे रख आना
रात गए जब आँख में उन की

मेरे बदन के फूल जलेंगे
ठंडे बदन पे आग मलेंगे

जल्दी जल्दी खिड़की तक पहुँचेंगे
उन पे जलते होंटों का इक चुम्बन!

चैत महीने वाला चुम्बन महका देंगे!!