चाँद ने मुझ से कहा ऐ शायर-ए-फ़िक्र-ए-अज़ल 
मेरे बारे में भी लिख दे कोई संजीदा ग़ज़ल 
हर तअल्लुक़ तोड़ रक्खा है हिलाल-ए-ईद से 
तुझ को फ़ुर्सत ही नहीं है मह-वशों की दीद से 
रस्म-ए-दीदार-ए-हिलाल-ए-ईद, अफ़्साना हुई 
बाम पर उस दम चढ़े, जिस वक़्त फ़रज़ाना हुई 
ले के नज़राना कमेटी ने उजाला है मुझे 
गर नहीं निकला, ज़बरदस्ती निकाला है मुझे 
में जो बे-मर्ज़ी निकल आया तो डाँटा है बहुत 
मौलवी ने मुख़्तलिफ़ ख़ानों में बाँटा है बहुत 
इस को मत फॉलो करो, इस की तरीक़त माँद है 
तुम बरेली के हो और ये देवबंदी चाँद है 
ये जो ख़ूँ-आलूद है, अफ़्ग़ानियों का चाँद है 
मुख़्तलिफ़ टुकड़ों में पाकिस्तानीयों का चाँद है 
इक कराची से है निकला इक पस-ए-लाहौर है 
सिंध का चाँद और है पंजाब का चाँद और है 
वो जो हम-साए की बीवी है ग़ज़ाला चाँद है 
और उस के साथ जो रहता है काला चाँद है 
शायरों ने अपने शेरों में बहुत पेला मुझे 
'मीर' ओ 'ग़ालिब' ने भी समझा ख़ाक का ढेला मुझे 
शेर में, रश्क-ए-क़मर लैला को फ़रमाने लगे 
ट्यूब-लाईट को हिलाल-ए-ईद बतलाने लगे 
अपनी बीवी से कहा उनत्तीसवीं का चाँद हो 
और पड़ोसन से कहा तुम चौदहवीं का चाँद हो 
आम सी औरत को मह-पारा बना कर रख दिया 
चाँद को टूटा हुआ तारा बना कर रख दिया 
चाँद पर जिस दिन से इंसाँ के क़दम पड़ने लगे 
चाँदनी जिन से हो ऐसे बल्ब कम पड़ने लगे 
मैं ज़मीं से दूर हूँ लेकिन बहुत नज़दीक हूँ 
ऐ ज़मीं वालो मैं तुम से दूर रह कर ठीक हूँ 
मैं ज़मीं पर आ गया तो हर बशर ले जाएगा 
सब से पहले टेन-परसेंट अपने घर ले जाएगा
        नज़्म
चाँद की फ़रियाद
खालिद इरफ़ान

