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चाहत | शाही शायरी
chahat

नज़्म

चाहत

दीप्ति मिश्रा

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तुम चाहते हो कि मैं
तुम्हें तुम्हारे लिए चाहूँ

क्यूँ भला
क्या कभी तुम ने

मुझे मेरे लिए चाहा
नहीं ना

दर-अस्ल
ये चाहने और न चाहने की

ख़्वाहिश ही
बे-मा'नी है

बा-मा'नी है तो
बस चाहत

मेरी चाहत
तुम्हारी चाहत

या फिर
किसी और की चाहत