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केथार्सिस | शाही शायरी
cathorsis

नज़्म

केथार्सिस

किश्वर नाहीद

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मैं तिरे ख़्वाबों की दोस्त थी
याद है तू ने मेरी बाँहों में

बातों के गजरे पहनाए थे
तू ने मेरा झूटा पानी पी के

मेरे होंट सुनहरे चमकाए थे
तेरे घर में आई थी

हर्फ़ भी वस्ल के पैराए थे
कच्चे प्याले पे मुँह रख के

मैं ने प्यास की ख़ुश्बू सूँघी
ओस ने दीद से रिश्ता बाँधा

रस ने रंग की चोली पहनी
घर में ख़्वाब की शाख़ लगा के

सोचा था दीवार ढकेगी
बैल उम्र या चढ़ जाएगी

कितने मीठे ख़्वाब थे जिन का
ज़िक्र करो तो होंट कसीले

कितने अनोखे रिश्ते थे वो
ख़्वाब से सच्चे ख़्वाब से झूटे

जीना-मरना ढोंग पुराना
बिछड़ के तुझ से वो भी जियेगा

तू भी हँसेंगी ज़िंदा रहेगी
उस के घर भी सभा सजेगी