हर माँ अपनी कोख से
अपना शौहर ही पैदा करती है
मैं भी जब
अपने कंधों पर
बूढ़े मलबे को ढो ढो कर
थक जाऊँगा
अपनी महबूबा के
कँवारे गर्भ में
छुप कर सो जाऊँगा
हर माँ अपनी कोख से
अपना शौहर ही पैदा करती है
नज़्म
बूढ़ा
निदा फ़ाज़ली
नज़्म
निदा फ़ाज़ली
हर माँ अपनी कोख से
अपना शौहर ही पैदा करती है
मैं भी जब
अपने कंधों पर
बूढ़े मलबे को ढो ढो कर
थक जाऊँगा
अपनी महबूबा के
कँवारे गर्भ में
छुप कर सो जाऊँगा
हर माँ अपनी कोख से
अपना शौहर ही पैदा करती है