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बोल अनमोल | शाही शायरी
bol anmol

नज़्म

बोल अनमोल

मजीद अमजद

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अब ये मसाफ़त कैसे तय हो ऐ दिल तू ही बता
कटती उम्र और घटते फ़ासले फिर भी वही सहरा

चैत आया चेतावनी भेजी अपना वचन निभा
पतझड़ आई पत्र लिखे आ जीवन बीत चला

ख़ुशियों का मुख चूम के देखा दुनिया मान-भरी
दुख वो सजन कठोर कि जिस को रूह करे सज्दा

अपना पैकर अपना साया काले कोस कठिन
दूरी की जब संगत टूटी कोई क़रीब न था

अपने गिर्द अब अपने आप में घुलती सोच भली
किस के दोस्त और कैसे दुश्मन सब को देख लिया

काँच की इक दीवार ज़माना आमने-सामने हम
नज़रों से नज़रों का बंधन जिस्म से जिस्म जुदा

राहें धड़कीं शाख़ें कड़कीं इक इक टीस अटल
कितनी तेज़ चली है अब के धूल-भरी हवा

दुखड़े कहते लाखों मुखड़े किस किस की सुनिए
बोली तो इक इक की वैसी बानी सब की जुदा