आँख वा थी
होंट चुप थे
इक रिदा-ए-यख़ हवा ने ओढ़ ली थी
जबीं ख़ामोश
सज्दे बे-ज़बाँ थे
आगे इक काला समुंदर
पीछे सुब्ह-ए-आतिशीं थी
और जब लम्हे रवाँ थे
हम कहाँ थे
नज़्म
बिला उनवान
ख़ालिद कर्रार
नज़्म
ख़ालिद कर्रार
आँख वा थी
होंट चुप थे
इक रिदा-ए-यख़ हवा ने ओढ़ ली थी
जबीं ख़ामोश
सज्दे बे-ज़बाँ थे
आगे इक काला समुंदर
पीछे सुब्ह-ए-आतिशीं थी
और जब लम्हे रवाँ थे
हम कहाँ थे