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बिला उनवान | शाही शायरी
bila unwan

नज़्म

बिला उनवान

ख़ालिद कर्रार

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आँख वा थी
होंट चुप थे

इक रिदा-ए-यख़ हवा ने ओढ़ ली थी
जबीं ख़ामोश

सज्दे बे-ज़बाँ थे
आगे इक काला समुंदर

पीछे सुब्ह-ए-आतिशीं थी
और जब लम्हे रवाँ थे

हम कहाँ थे