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बिके अभावों के हाथों | शाही शायरी
bike abhawon ke hathon

नज़्म

बिके अभावों के हाथों

कुंवर बेचैन

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मन बेचारा एक-वचन
लेकिन

दर्द हज़ार-गुने
चाँदी की चम्मच ले कर

जन्मे नहीं हमारे दिन
अँधियारी रातों के घर

रह आए भावुक-पल छिन
चंदा से सौ बातें कीं

सूरज ने जब घातें कीं
किंतु एक नक्कार-गह में

तूती की ध्वनी
कौन सुने

बिके अभावों के हाथों
सपने खेल-बताशों के

भरे नुकीले शूलों से
आँगन

खेल तमाशों के
कुछ को चूहे काट गए

कुछ को झींगुर चाट गए
नए नए संकल्पों के

जो भी हम ने जाल बुने