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बीमार की रात | शाही शायरी
bimar ki raat

नज़्म

बीमार की रात

जावेद अख़्तर

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दर्द बे-रहम है
जल्लाद है दर्द

दर्द कुछ कहता नहीं
सुनता नहीं

दर्द बस होता है
दर्द का मारा हुआ

रौंदा हुआ
जिस्म तो अब हार गया

रूह ज़िद्दी है
लड़े जाती है

हाँफती
काँपती

घबराई हुई
दर्द के ज़ोर से

थर्राई हुई
जिस्म से लिपटी है

कहती है
नहीं छोड़ूँगी

मौत
चौखट पे खड़ी है कब से

सब्र से देख रही है उस को
आज की रात

न जाने क्या हो