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बीमार दिनों में | शाही शायरी
bimar dinon mein

नज़्म

बीमार दिनों में

कुमार पाशी

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मैं अपने बीमार दिनों में
एक ही बात कहा करता हूँ

रात बहुत ही गहरी काली हो सकती है
और मैं लम्बी लम्बी चादर तान के सो सकता हूँ

सूरज अंधा हो सकता है
चाँद सितारे सारे

सच-मुच
इक इक कर के बुझ सकते हैं

लेकिन मेरे अंदर
जो नन्हा सा एक दिया रौशन है

उस के उजले साए कभी नहीं मर सकते
जग में घोर अंधेरा कभी नहीं कर सकते