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बीज | शाही शायरी
bij

नज़्म

बीज

ख़दीजा ख़ान

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बार बार रौंदा गया एहसास
कुचला गया जज़्बा

तोड़ा गया यक़ीन
मिटाया गया निशाँ

दफ़नाया गया ज़िंदा
उजाड़ा गया बे-वज्ह

फिर भी
न मरा

न टूटा
न छूटा

दिलों की नर्म-नाज़ुक
मिट्टी में

फलता फूलता रहा
मोहब्बत का

नन्हा बीज