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भूत | शाही शायरी
bhut

नज़्म

भूत

पैग़ाम आफ़ाक़ी

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हम वहाँ पे बैठे थे
ब'अद में हुआ मालूम

मैं वहाँ अकेला था
भूत मैं ने देखे थे

ख़ौफ़ से मैं लर्ज़ा था
और आज तक तब से दिल मिरा धड़कता है

जब भी कोई देता है दिल के पर्दे पर दस्तक
मुझ को ऐसा लगता है ये हवा का झोंका था

हम तो जाने वाले थे एक साथ ही लेकिन
जब वहाँ पे पहुँचे हम मैं वहाँ अकेला था

दूर दूर तक कोई साया तक नहीं पाया
इक अजीब आलम था

इक अजीब धोका था