मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
ये तारों की चमक में है न फूलों ही की ख़ुश्बू में
तिरी तस्वीर में जो दिलकशी महसूस होती है
तुझे मैं आज तक मसरूफ़-ए-दर्स-ओ-वा'ज़ पाता हूँ
तिरी हस्ती मुकम्मल आगही महसूस होती है
ये क्या मुमकिन नहीं तू आ के ख़ुद अब इस का दरमाँ कर
फ़ज़ा-ए-दहर में कुछ बरहमी महसूस होती है
उजाला सा उजाला है तिरी शम-ए-हिदायत का
शब-ए-तीरा में भी इक रौशनी महसूस होती है
मैं आऊँ भी तो क्या मुँह ले के आऊँ सामने तेरे
ख़ुद अपने-आप से शर्मिंदगी महसूस होती है
तख़य्युल में तिरे नज़दीक जब मैं ख़ुद को पाता हूँ
मुझे उस वक़्त इक-तरफ़ा ख़ुशी महसूस होती है
तू ही जाने कहाँ ले आई मुझ को आरज़ू तेरी
ये मंज़िल अब सरापा बे-ख़ुदी महसूस होती है
'कँवल' जिस वक़्त खो जाता हूँ मैं उस के तसव्वुर में
मुझे तो ज़िंदगी ही ज़िंदगी महसूस होती है
नज़्म
भगवान 'कृष्ण' की तस्वीर देख कर
कँवल एम ए