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भारी पेड़ों-तले | शाही शायरी
bhaari peDon-tale

नज़्म

भारी पेड़ों-तले

अनवार फ़ितरत

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कश्ती अंदर
घूर समुंदर

लहर लहर लहराए
पोरों अंदर

नीला अम्बर
घुमर घुमर चकराए

जिस को देखूँ
डूबता जाए

लौट के फिर नहीं आए
गुम हो जाए

कोई नहीं पाए