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ख़ुद-फ़रामोशी | शाही शायरी
KHud-faramoshi

नज़्म

ख़ुद-फ़रामोशी

सुलैमान अरीब

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चला था घर से कि बच्चे की फ़ीस देनी थी
कहा था बीवी ने बेच आऊँ बालियाँ उस की

कि घर का ख़र्च चले और दवा भी आ जाए
सवाल ये है कि क्या इल्म ने दिया अब तक

बजाए कल के अगर आज मर गए तो क्या
ज़मीं पे कितने मसाइल हैं आदमी के लिए

ख़याल आया चलो आज जब कि ज़िंदा हैं
चढ़ा के आएँगे दो फूल गोर-ए-मादर पे

कि चाँद में तो किसी माँ की क़ब्र क्या होगी
न जाने क्या हुआ जब घर पहुँच गया अपने

बताया बीवी ने फिर आज पी के आया हूँ