जब पहाड़ ढे जाएँगे
अपने ही बोझ से
समुंदर डूब जाएँगे
अपनी ही गहराई में
सूरज जल जाएँगे
अपनी ही आग में
तो एक आदमी
देख रहा होगा ये मंज़र
बे-ज़ारी के साथ
नज़्म
बे-ज़ारी की आख़िरी साअत
अहमद जावेद
नज़्म
अहमद जावेद
जब पहाड़ ढे जाएँगे
अपने ही बोझ से
समुंदर डूब जाएँगे
अपनी ही गहराई में
सूरज जल जाएँगे
अपनी ही आग में
तो एक आदमी
देख रहा होगा ये मंज़र
बे-ज़ारी के साथ