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बे-परों की तितली | शाही शायरी
be-paron ki titli

नज़्म

बे-परों की तितली

सरवत ज़ेहरा

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ये झाड़न की मिट्टी से
में गिर रही हूँ

ये पंखे की घूं-घूं में
मैं घूमती हूँ

ये सालन की ख़ुशबू पे
मैं झूमती हूँ

मैं बेलन से चकले पे
बेली गई हूँ

तवे पर पड़ी हूँ
अभी पक रही हूँ

ये कुकर की सीटी में
मैं चीख़ती हूँ

किसी देगची में पड़ी गल रही हूँ
मगर जी रही हूँ