दरीचे बाज़ थे
ठंडी हवा की नर्म दस्तक से
नवा-ए-नीम-शब
आँखें ठिठक कर खुल गईं
महताब के ख़ामोश जादू से
समुंदर भी हुमकता था
मुझे वो नाम क्या देना
झलक ख़ुद इस्म गर की जिस में आती हो
मुझे क्यूँ क़ैद करते हो
मैं मुट्ठी में समा जाऊँ
तिलिस्मी ताक़तें बे-आसरा बंदों को दहलाएँ
कहीं दीवार पर चस्पाँ
गरेबानों की ज़ीनत में
बलाओं से हिफ़ाज़त कर सकूँ
क्यूँ नाम देते हो
हज़ारों क़र्न-हा क़रनों से
यूँ ही चाँद बरसा है
समुंदर आह भरता है
मोअ'त्तर फूल के गजरों में बस कर
फ़ासलों के लम्स की दूरी तड़पती है
मुझे महसूस कर लो
आँख-भर कर देख लो
फिर नींद की तह में
थिरकते बर्ग आवारा की सूरत
डूबते जाओ
मुझे बे-नाम रहने दो
नज़्म
बे-नाम
अबरारूल हसन