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बे-ख़्वाबी की आकास बेल पर खिली ख़्वाहिश | शाही शायरी
be-KHwabi ki aakas bel par khili KHwahish

नज़्म

बे-ख़्वाबी की आकास बेल पर खिली ख़्वाहिश

नसीर अहमद नासिर

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मुझ को सोने दो
सदियों जैसी गहरी लम्बी नींद

जिस में कोई ख़्वाब न हो
मुझ को सोने दो

उस लड़की की नींद
जो अपनी आँखें

मेरी आँखों में रख कर
भूल गई है!

मुझ को सोने दो
उन लोगों की नींद

जिन की आँखों में
बादल और परिंदे उड़ते हैं

दरिया बहते हैं
लेकिन वो प्यासे रहते हैं

मुझ को सोने दो
चारों सम्त बिछे सहराओ!

मेरे दिल में एक समुंदर है
मुझ को इस में अपने

सारे ख़्वाब डुबोने दो
मुझ को रोने दो!

मुझ को सोने दो!!