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बे-दुआ लम्हे | शाही शायरी
be-dua lamhe

नज़्म

बे-दुआ लम्हे

मुनीर अहमद फ़िरदौस

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हमारे होंटों के ग़ार
वीरानियों में ऐसे घिरे

कि बे-दुआ लम्हों ने उन पर जाले बुन कर
इन्दर पड़ी तमाम दुआओं को क़ैद कर दिया

हमारे लब मुद्दत से
दुआओं के ज़ाइक़े खो चुके

कोई नन्ही सी दुआ रास्ता पा कर
आसमानों का सफ़र करती है

तो कितनी ही भटकती बद-दुआएँ मिल कर
इस दुआ का रास्ता रोक लेती हैं

हम बे-दुआ रुतों में घिर कर
अपनी दुआओं के ख़ज़ाने खो चुके हैं