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बयान | शाही शायरी
bayan

नज़्म

बयान

मुस्तफ़ा अरबाब

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मैं ने
कभी नहीं नापा

बात की बुलंदी को
दानिश ने

मुझे जिहालत से रू-शनास करा दिया
किसी भी मुक़ाबले में

मेरा नाम नहीं होता
मैं एक वसवसे की तरह

ज़िंदगी के आस-पास रहता हूँ
मुझ से बयान ही नहीं होती

एक दिल की दास्तान
मैं ने

मोहब्बत से सीख लिया है
नाकाम कैसे होते हैं